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स॒जूरब्दो॒ऽअय॑वोभिः स॒जूरु॒षाऽअरु॑णीभिः। स॒जोष॑साव॒श्विना॒ दꣳसो॑भिः स॒जूः सूर॒ऽएत॑शेन स॒जूर्वै॑श्वान॒रऽइड॑या घृ॒तेन॒ स्वाहा॑ ॥७४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। अब्दः॑। अय॑वोभि॒रित्यय॑वःऽभिः। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। उ॒षाः। अरु॑णीभिः। स॒जोष॑सा॒विति॑ स॒जोष॑ऽसौ। अ॒श्विना॑। दꣳसो॑भि॒रिति॒ दꣳसः॑ऽभिः। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। सूरः॑। एत॑शेन। स॒जूरिति॑ स॒ऽजूः। वै॒श्वा॒न॒रः। इड॑या। घृ॒तेन॑। स्वाहा॑ ॥७४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:74


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को किस प्रकार परस्पर सुखी होना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! हम सब लोग स्त्री-पुरुष जैसे (अयवोभिः) एकरस क्षणादि काल के अवयवों से (सजूः) संयुक्त (अब्दः) वर्ष (अरुणीभिः) लाल कान्तियों के (सजूः) साथ वर्त्तमान (उषाः) प्रभात समय (दंसोभिः) कर्मों से (सजोषसौ) एकसा वर्त्ताववाले (अश्विना) प्राण और अपान के समान स्त्री-पुरुष वा (एतशेन) चलते घोड़े के समान व्याप्तिशील वेगवाले किरणनिमित्त पवन के (सजूः) साथ वर्त्तमान (सूरः) सूर्य (इडया) अन्न आदि का निमित्तरूप पृथिवी वा (घृतेन) जल से (स्वाहा) सत्य वाणी के (सजूः) साथ (वैश्वानरः) बिजुलीरूप अग्नि वर्त्तमान है, वैसे ही प्रीति से वर्त्तें ॥७४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों में जितनी परस्पर मित्रता हो उतना ही सुख और जितना विरोध उतना ही दुःख होता है। उस से सब लोग स्त्रीपुरुष परस्पर उपकार करने के साथ ही सदा वर्त्तें ॥७४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कथं कृत्वा सुखयितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(सजूः) संयुक्तः (अब्दः) संवत्सरः (अयवोभिः) मिश्रितामिश्रितैरन्नैः क्षणादिभिः कालावयवैः (सजूः) सह वर्त्तमानाः (उषाः) प्रभातः (अरुणीभिः) रक्तप्रभाभिः (सजोषसौ) समानसेवनौ (अश्विना) प्राणापानाविव दम्पती (दंसोभिः) कर्मभिः (सजूः) सहितः (सूरः) सूर्य्यः (एतशेन) अश्वेनेव व्याप्तिशीलेन वेगवता किरणनिमित्तेन वायुना। एतश इत्यश्वनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१४) (सजूः) संयुक्तः (वैश्वानरः) विद्युदग्निः (इडया) अन्नादिनिमित्तरूपया पृथिव्या (घृतेन) जलेन (स्वाहा) सत्येन वागिन्द्रियेण। [अयं मन्त्रः शत०७.२.३.८ व्याख्यातः] ॥७४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! वयं सर्वे स्त्रीपुरुषा यथाऽयवोभिः सजूरब्दोऽरुणीभिः सजूरुषा दंसोभिः सजोषसावश्विनेव एतशेनेव सजूः सूर इडया घृतेन स्वाहा सजूर्वैश्वानरश्च वर्तते, तथैव प्रीत्या वर्त्तेमहि ॥७४ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्येषु यावत् परस्परं सौहार्दं तावदेव सुखम्। यावद् दौहार्दं तावदेव दुःखं च जायते, तस्मात् सर्वैः स्त्रीपुरुषः परोपकारक्रियया सहैव सदा वर्त्तितव्यम् ॥७४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांमध्ये जितकी परस्पर मैत्री असेल तितके सुख मिळते व जितका विरोध असेल तितके दुःख होते. त्यासाठी सर्व स्त्री-पुरुषांनी परस्पर उपकार होईल असे वर्तन करावे.